प्रसाद एवं अन्य धार्मिक वस्तुएं
प्रमुख प्रसाद देशी घी लड्डू और खुरचन पेड़ा
अयोध्या धर्म नगरी है, इसलिए यहाँ के बाज़ार धार्मिक अनुष्ठानों में उपयोग में लाये जाने वाले सामानों से पटे रहते हैं. यहाँ अलग अलग मन्दिरों में भगवान को प्रसाद के रूप में मिष्ठान चढ़ाया जाता है. प्रसाद के तौर पर देशी घी के बेसन लड्डू और अयोध्या का विशेष खोये के खुरचन पेड़ा मशहूर है. अयोध्या के बड़े से बड़े मन्दिर से लेकर गलियों तक में लड्डू पेड़ा की दुकाने हैं. प्रसाद के लिए इस्तेमाल में आने के कारण इन मिठाईयों में स्वच्छता और पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है. इसके अलावा यहाँ दूर दूर से आने वाले श्रद्धालु राम दाना पट्टी भी ले जाना पसंद करते हैं. राम दाना सफ़ेद छोटे छोटे दाने होते हैं जो खाने में बेहद हलके और फुसफुसे होते हैं. उत्तर भारत में इसे रामदाना के नाम से जाना जाता है, बल्कि देश के कुछ हिस्से में इसे राजगिरा के नाम से भी जाना जाता है. राम दाना को चाशनी में पाग कर थाली के आकार की पट्टी बनायी जाती है जिसे लाने और ले जाने में सहूलियत रहती है. वैज्ञानिक तथ्यों के अनुसार राम दाना में भरपूर आयरन और फाइबर पाया जाता है. जो कि स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है. अयोध्या में भक्ति भाव से पूर्ण भक्त जब अपने अराध्य से मिलता है . तो वह भाव पूर्ण प्रसाद अपने अराध्य को अर्पित करता है . जो मंदिरों के पास लगी भोग प्रसाद की दुकानों से प्राप्त करता है . भोग में बेसन व् बूंदी लड्डू , खोये का पेंडा , इलाइची दाना अर्पित करता है . बंदरों को चना भोग के रूप में अर्पित करता है.
भोग प्रसाद
यहाँ के मन्दिरों, आश्रमों, छावनियों और धर्मशालाओं में भगवान को भोग प्रसाद लगाने के बाद ही अन्य लोगों की पंगत लगती है. अयोध्या के लोग रामानंद सम्प्रदाय के है जहाँ लहसुन प्याज खाना वर्जित है. मठ मंदिरों में अराध्य भोग अर्पित करके उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करने की परम्परा है .जहाँ भोग में लहसुन और प्याज जैसे तामसी खाद्य सामग्रियों का इस्तेमाल वर्जित है. मन्दिर–मठों में प्रातः और सायं नित्य बाल भोग चढ़ता है, दोपहर में राजभोग और शाम को शाही भोग की व्यवस्था होती है.
अन्न क्षेत्र
कुछ संतों की छावनियों में यहाँ नित्य अन्न क्षेत्र चलता है. अन्न क्षेत्र उन स्थानों को कहा जाता है, जहाँ नित्य भोग प्रसाद के रूप में साधु, संतों और श्रद्धालुओं के लिए निशुल्क भोजन की व्यवस्था रहती है. सबसे पहले ठाकुर जी को भोग लगता है, उसके पश्चात संतों साधुओं की पंगत लगती है, उसके बाद नारायण सेवा. इन अन्न क्षेत्रों में नित्य सैकड़ों लोग भोग प्रसाद प्राप्त कर धन्य होते हैं. दूर दूर से श्रद्धालु यहाँ आकर भण्डारे में अपना योगदान भी देते हैं.
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